Soniya bhatt

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कृष्ण जन्म की कथा




श्री कृष्ण के जन्म की कथा

भगवान श्री कृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।इस कथा को कौन नही जानता होगा? भगवान श्री कृष्णा कि एक एक लीला सुनकर मन को तृप्ति मिलती है। वैसे तो उनके जन्म का कौन गान कर सकता है। फिर भी जैसा मैंने गुरुजनो से सीखा , पढ़ा और देखा है वो आपके सामने रख रहा हूँ।
        भगवन श्री कृष्ण जन्म कथा  –

        
        एक बार धरती माता बहुत दुखी हुई। कंस जैसे बहुत से असुरो ने धरती माँ को बहुत परेशान किया। धरती पर पाप बढ़ गया। पृथ्वी ने गऊ का रूप बनाया और आँखों में आंसू लिए ब्रह्मा के पास गई और कहा बेटा,ब्रह्मा मेरे ऊपर पाप बहुत बढ़ गया है और मैं पाप से दबी जा रही हु। ब्रह्मा जी बहुत दुखी हुए और भगवन विष्णु के पास क्षीर-सागर गए। ब्रह्मा जी के साथ सारे देवता और भगवान शिव भी थे। भगवान विष्णु कि सबने स्तुति की। भगवान कि आकाशवाणी सुनाई दी। ब्रह्मा बोले कि देवताओ मुझे भगवान कि आज्ञा हुई है कि मैं जल्दी ही धरती पर देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप मैं जन्म लूंगा और मेरा साथ श्री बलराम जी और राधा जी भी अवतार लेंगे। और तुम अपने अपने अंशो से जाकर यादव कुल में अवतार धारण करो। सब देवताओ ने भूरि-भूरि प्रशंसा कि है।

        
        मथुरा के राजा थे उग्रसेन। इनके भाई थे देवक। उग्रसेन के 5 बेटियां और 9 बेटे थे। देवक महाराज कि 6 बेटियों कि शादी सुरसेन के बेटे वसुदेव से कर चुके थे। अंत में देवकी कि शादी भी वसुदेव से मंगल मुहर्त में कर दी।ये कंस की चचेरी बहन थी। देवता फूलों कि बारिश  कर रहे है। मंगल गान गया जा रहा है। महाराज ने बहुत सा सामान अपनी बेटी को दिया। जब विदा का समय आया तो रथ में देवकी और वसुदेव दोनों विराजमान है। सबकी आँखों में आंसू थे। कंस भी रो रहे थे। कंस को अपनी बहनो से ज्यादा देवकी से प्रेम था। क्योंकि घर में सबसे छोटी है। मैंने अपनी बहन को इतना प्यार दिया है तो क्या में इसके घर तक इसे नही छोड़ के आ सकता। कंस ने सारथि को उतार कर खुद घोड़ो कि रास पकड़ ली और महलो कि और चले। जब बीच राजपथ पर पहुंचे तो आकाशवाणी हुई। अरे कंस ,” जिस बहिन को इतना लाड प्यार से विदा कर रहा है इसी का आठवां बेटा तेरा काल बनेगा। जैसे ही कंस ने सुना तो म्यान से तलवार निकाल ली। जब वसुदेव ने देखा तो कहा-कंस आकाशवाणी कि आवाज मैंने भी सुनी है-

        देखो कंस जिस दिन संसार में जीव पैदा होता है उसी दिन मौत भी निश्चित हो जाती है। अगर देवकी के बालको से तुम्हारी मृत्यु होने वाली होगी तो उसे कोई टाल नहीं सकता है। लेकिन एक बात मैं  तुमसे कहना चाहता हु तुम्हे अपनी बहिन से डर नही है, इसके बालको से है। तो मै आज प्रतिज्ञा करता हु जितने भी देवकी के बालक होंगे सब लाकर तुम्हे दे दूंगा। वसुदेव ने अपने जीवन मे कभी झूठ नही बोला था। कंस को विश्वास हो गया ।देवकी और वसुदेव दोनों को बंधन से मुक्त कर दिया।

        कुछ समय बाद बेटा हुआ नाम रखा कीर्तिमान। बालक लेकर कंस को दिया। कंस ने कहा कि मुझे इस बालक से डर नही है। आठवें से है। तुम ले जाओ इसे। वसुदेव लेकर चले गए।

        
        नारद ने सोचा कि अगर कंस जैसे पापी के मन मे दया आ गई तो भगवान का अवतार कैसे होगा। अपनी वीणा लेके कंस के पास आये और बोले कंस देवकी के बालको का क्या हुआ?
        कंस ने कहा-मुझे आठवे बचे से डर है पहले से नहीं। नारद ने आठ दानो कि माला लेकर कंस के हाथ मे दी और कहा-दाने गिनो।
        कंस ने कहाँ इसमें आठ मनका(दाने) है।
        अब आप पहले मनके से नहीं दूसरे से गिनती शुरू करो और पहले वाले को अंत मे गिनना।
        जब कंस ने गिना तो पहले वाला आठवे नंबर पर आया।
        फिर नारद बोले कि अब तीसरे मनके को पहले नंबर से गिनो और दुसरो को अंत मे गिनना।
        इस तरह से नारद ने प्रत्येक माला के मनके को आंठवा बना के दिखाया।
        कंस बोले कि आप क्या बच्चो वाला खेल खिला रहे है मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा है।
        नारद बोले कि कंस यही मे समझा रहा हु जैसे इस माला का प्रत्येक दाना आठवां है वैसे ही हर बालक मे भगवान का वास है।
        (नारद जी कभी बच्चो को मारने कि शिक्षा नहीं देंगे) लेकिन कंस कि बुद्धि जड़ है। हर बार उल्टा ही सोचती है।
        कंस के मन मे आया देवकी का हर बालक आठवां है और तेरा काल है। फिर नारद जी चले गए।
        देवकी के 6 बालक हुए कंस ने सभी को मरवा दिया। देवकी और वसुदेव को कारागार मे बंद करवा दिया।

        
        भगवान ने योग माया को सातवां बालक बनने कि आज्ञा दी और कहा तुम देवकी के सातवे गर्भ का आकर्षण करो और रोहिणी जी के गर्भ मे डाल दो और नन्द गाँव मे जाओ। और यशोदा  के गर्भ से पुत्री बनकर जन्म लेना तुम्हारी दुर्गा के रूप मे पूजा होगी।
        
        कंस को पता चला तो हसने लगा और कहा कि चलो अच्छा हुआ मुझे मारना नहीं पड़ा खुद ही गर्भ नष्ट हो गया।
        कंस को पता चला कि अब मेरा काल आने वाला है तो चतुरंगिणी सेना खड़ी कर दी। हाथी, घोड़े , पैदल और रथ। देवकी के गर्भ में भगवान आके साक्षात् बिराजे। देवताओ ने स्तुति की प्रभु आप ही सत्य है। बड़ा सुन्दर समय आया है। कृष्ण पक्ष, बुधवार है और चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। आकाश में तारो का प्रकाश है। एकदम से बादल गरजने लगे और बिजली चमकने लगी। सरोवर के कमल के फूल खिल रहे है। अग्नि कुंडो में अग्नि प्रज्जवलित हो गई है। मंद मंद बारिश होने लगी है। अर्ध रात्रि का समय है। देवकी और वसुदेव के हाथ पैरो की बेड़ियां खुल गई है। और भगवान कृष्ण ने चतुर्भुज रूप से अवतार लिया है। देवकी और वसुदेव ने भगवान की स्तुति की है। देवकी ने कहा की प्रभु आपका रूप दर्शनीय नही है, आप और बालको की तरह छोटे से बन जाइये। भगवान ने छोटे से बाल कृष्ण बनके माँ की गोद में विराजमान हो गए। सुन्दर टोकरी है। उसमे मखमल के गद्दे लगे हुए है। भगवान की प्रेरणा हुई की आप मुझे गोकुल में छोड़ आइये और वहां से कन्या को लेकर आ जाइये। वसुदेव चल दिए है। कारगर के द्वार अपने आप खुल गए और सभी सैनिक बेहोश हो गए। रास्ते मैं यमुना नदी आई है। वसुदेव जी यमुना पार कर रहे है लेकिन यमुना की भगवान कृष्ण की पटरानी है। पैर चुना चाहती है लाला के। लेकिन ससुर जी लाला को टोकरी में लिए हुए है। यमुना ने अपना जल स्तर बढ़ाना सुरु किया। भगवान बोले आरी यमुना ये क्या कर रही है। देख अगर मेरे बाबा को कुछ हुआ तो अच्छा नही होगा। यमुना बोले की आज तो आपके बाल रूप के दर्शन हुए है। तो क्या में आपके चरण स्पर्श न करू। तब भगवान ने अपने छोटे छोटे कमल जैसे पाँव टोकरी से भर निकले और यमुना जी ने उन्हें छुआ और आनंद प्राप्त किया। फिर यमुना का जल स्तर कम हो गया। लेकिन बारिश भी बहुत तेज थी। तभी शेषनाग भगवान की टोकरी के ऊपर छत्र छाया की तरह आ गए। भगवान के दर्शन करने को सब लालायित है। वसुदेव जी ने यमुना नदी पार की है और गोकुल में आ गए है।

        
        माघ का महीना मकर सक्रांति का दिन था। नन्द बाबा के छोटे भाई थे उपनन्द। इनके घर ब्राह्मण भोजन करने आये थे। नन्द बाबा से उपनन्द ने कहा आप सबको तिलक करे और दक्षिणा दे। तिलक करने के बाद आशीवार्द दिया था आयुष्मान भव, धनवान भव , पुत्रवान भव। नन्द बाबा बोले आप हंसी क्यों करते हो मैं 60 साल का हो गया हु और आप कहते हो पुत्रवान भव। ब्राह्मण बोले की हमारे मुख से आशीर्वाद निकल गया है की आपके यहाँ बेटा ही होगा। आशीर्वाद देकर सभी ब्राह्मण वहां से चले गए।

        माघ मास एकम तिथि नन्द और यशोदा को सपने में कृष्ण का दर्शन हुआ। और उस दिन यशोदा ने नन्द बाबा के द्वारा गर्भ धारण किया। सावन के महीना में रक्षा बंधन का दिन आया। सभी ब्राह्मण नन्द बाबा के पास आये। नन्द बाबा ने सबके हाथो में मोली बाँधी। और सबको दक्षिणा दी। फिर वही आशीर्वाद दिया। ब्रजराज धनवान भव, आयुष्मान भव, पुत्रवान भव। नन्द बाबा को हसी आ गई और बोले-आपके आशीर्वाद फलने तो लगा है लेकिन पुत्रवान की जगह पुत्रीवान हो गई तब क्या करोगे? ब्राह्मण बोले कि हम ऐसे वैसे ब्राह्मण नही है, कर्मनिष्ठ है और धर्मनिष्ट है। यदि आपके यहाँ लड़की भी हो गई तो उसे लड़का बना कर दिखा देंगे। तुम रक्षा मोली बाँध दो। जब जाने लगे ब्राह्मण तो नन्द बाबा बोले कि आप ये बता दीजिये कि अभी कितना समय बाकि है? सभी ब्राह्मण एक साथ बोले कि आज से ठीक आठवे दिन रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में आपके यहाँ लाला का जन्म हो जायेगा।
        ब्राह्मण आशीर्वाद देकर चले गए।
        नन्द बाबा ने आठ दिन पहले ही तैयारी कर दी। सारे गोकुल को दुल्हन कि तरह सजा दिया गया। वो समय भी आ गया।
        रात्रि के आठ बज गए। घर के नौकर चाकर सब नन्द बाबा के पास आये और बोले बाबा नाम तो आज का ही लिया है न। हमे नन्द आ रही है आठ दिन से सेवा में लगे है आप कहो तो सो जाये। नन्द बाबा ने बोला हाँ भैया तुमने बहुत काम किया है आप सो जाओ। घर के नौकर चाकर सोने चले गए। 2 घंटे का समय और बीता। नन्द बाबा कि 2 बहन थी नन्द और सुनंदा। नन्द बाबा ने सुनंदा से कहा बहन रात के 10 बज रहे है मुझे नन्द आ रही तू कहे तो थोड़ी देर के लिए में भी सो जाऊ। सुनंदा बोली कि हाँ भैया तुम भी सो जाओ। मैं भाभी के पास हु जब लाला का जन्म होगा तो आपको बता दूंगी। नन्द बाबा भी सो गए। रात के 11 बजे सुनंदा को भी नन्द आ गई। यशोदा के पास जाकर बोली भाभी नाम तो आज का ही लिया है न कि आज ही जन्म होगा। अगर आप कहो तो थोड़ी देर के लिए में सो जाऊ बहुत थकी हुई हु। लाला कि बुआ सुनंदा भी 11 बजे सो गई। सब लोग क्यों सो रहे है भगवान के जन्म के समय। क्योकि पहले आ रही है योग माया। माया का काम है सुलाना। लेकिन जब भगवान आते है तो माया वहां से चली जाती है और सबको जग देते है। जब 12 बजे का समय हुआ तो लाला कि मैया भी सो गई। उसी समय वसुदेव जी आये और लड़की(देवी) को लेकर चले गए और लाला(कृष्ण) को यशोदा के बगल में लिटा दिया।
        भगवान माँ के पलंग पर सोये हुए है। लेकिन जहाँ से आवाज आती है वहीँ से खर्राटे कि आवाज आ रही है। माँ सो रही है, पिता सो रहे है, बुआ सो रही है, घर के नौकर चाकर सभी सो रहे है। कितने भोले है ब्रजवासी इनको ये नही पता कि मैं  पैदा हो गया हु। उठ कर नाचे गाये। क्या में मैया से कह दू कि मैया में पैदा हो गया हु तू जग जा। भगवान बोले नही नही यहाँ बोला तो माँ डर जाएगी।
        अब क्या करू? भगवान ने सोचा कि थोड़ा सा रोउ माँ जाग जाएगी। लेकिन भगवान को रोना ही नहीं आता है। फिर भी भगवन ने एक्टिंग कि है रोने कि। लेकिन संसार के बालक कि तरह नही रोये। भगवान जब रोने लगे तो ओम कि ध्वनि निकल गई।  कृष्णं बन्दे जगतगुरू। सबसे पहले लाला कि बुआ आई। अरी बहन सुनंदा बधाई हो बधाई हो लाला का जन्म भयो। दौड़कर नन्द बाबा के पास गई है। और बोली कि लाला का जन्म हो गया है।
        देखते ही देखते पूरा गाँव जाग गया। सभी और बधाई बाँटने लगी और सब भगवान कृष्ण के जन्म को उत्साहपूर्वक मनाने लगे।




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